Sunday 24 November 2019

वह पीला पत्ता कहानी /डॉ प्रमीला वर्मा

 डॉ  प्रमिला वर्मा  
परिचय
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जबलपुर में  जन्म ।
पिछले 30 वर्षों से लगातार लेखन ।सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित। स्त्री विमर्श पर "सखी की बात" स्थाई स्तंभ जो साँध्य दैनिक में 10 वर्ष चला ,चर्चित रहा।  
सभी विधाओं पर लेख प्रकाशित।
6 कहानी संग्रह, संयुक्त उपन्यास।
संपादित कथा, कविता संग्रह  आदि प्रकाशित 
20 वर्ष तक अखबारों में फीचर संपादक के पद पर कार्यरत।
दि संडे इंडियन पत्रिका में 21वीं सदी की 111 हिंदी लेखिकाओं में एक नाम ।
"बीसवीं  सदी की महिला लेखिकाओं " के नौवें खंड में कहानी ।
महिला रचनाकार: अपने आईने में  आत्मकथ्य , पुस्तक  रुप में  प्रकाशित। 
महिला पुलिस तक्रार केंद्र की सम्मानित सदस्य। सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय विजय वर्मा की स्मृति में हेमंत फाउंडेशन की स्थापना। ट्रस्ट की संस्थापक/ सचिव। जिसके  अंतर्गत 20 वर्षों से विजय वर्मा कथा सम्मान एवं  हेमंत स्मृति कविता सम्मान  प्रदान करना ।
विश्व मैत्री मंच की मीडिया प्रभारी ।
कई पुरस्कारों से सम्मानित। सोशल एक्टिविस्ट फॉर वुमन एंपावरमेंट ।जंगलों की देश, विदेश की सैर उसी दौरान कुछ मुद्दों पर लेखन, शोध आदि। चिड़ियों पर विशेष शोध हेतु पक्षी विशेषज्ञ श्री सलीम अली के साथ सुदूर रोमांचक समुद्री यात्राएं।  

निवास
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औरंगाबाद (महाराष्ट्र )431005
 मोबाइल नंबर 073918 66481 
email-id. vermapramila16 @ gmail.com


वह पीला पत्ता
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युद्ध के बाद की वह प्रथम पतझड़ थी। वसंत को बिदा किए तो उसे लगता है, जैसे बरसों बीत गए हों। पीले सूखे पत्ते अछोर फैले थे।
नोएल का होना अब मरीचिका बन चुका था, और वह है कि उसके पीछे बेतहाशा भाग रही है, पर वह पास आता नहीं। क्योंकि मन का कोई यथार्थवादी कोना उसे बताने की कोशिश करता रहता है कि यह सब अयथार्थ है और तुम्हारे हिस्से में नहीं है। उसने बेतहाशा दर्द में डूबकर रुलाई रोक ली। उसे लगा कि दिमाग की कोई नस चटख जाएगी और फिर नाक-मुंह  से खून बहने लगेगा।
"कहां हो नोएल तुम?" रुलाई है कि रोकने से और-और आती है।
इस सूनी सड़क पर निरर्थक घूमते रहना और फिर जाकर कैंप कॉफी हाउस में बैठ जाना उसकी दिनचर्या बन गया था। सूखे पत्तों पर कैनवास के अपने फटे जूते रखकर वह चलती तो पत्ते कसमसा उठते। वे जूते उसे प्रिय थे क्योंकि वे उसने नोएल के साथ खरीदे थे। उसने अपनी डेनिम की पुरानी जैकेट के पॉकिट में हाथ 
डाला और वह पीला पत्ता निकाला जिस पर नोएल के खून के दाग थे... युद्ध का साक्षी वह पीला पत्ता। ऐसे कई पत्तों पर नोएल का खून गिरा था... उसने बिलखते हुए कई पत्ते उठा लिए थे... वह उन पत्तों को रोज ही चूमती थी... फिर हिंदुस्तान आया यही एक पत्ता। पीला पत्ता... उसके सामने आकर बैठ गया है और रह-रहकर उसमें हरकत होती है... पत्ते के डंठल पर उसके आंसू अटक गए हैं... पत्ते में सचमुच हरकत है या पत्ते की हरकत से उन आंसुओं ने न जाने किस देश का नक्शा उसकी खुली कॉपी के सूने पन्ने पर बना दिया है। उसे पत्ते पर तरस आ रहा है। युद्ध के खून से भीगा पत्ता। वह पत्ते के पीलेपन से भर उठी है, उसने पत्ता उठाकर अपनी हथेली पर रख लिया। उसे लग रहा है कि चारों ओर से दीवारों पर अनगिनत नक्शे बन गए हैं। उन देशों के जहां पर वह कभी नहीं गई, शायद वे देश पृथ्वी पर हैं भी नहीं। दीवारें उसके इतना करीब आ रही हैं कि उसका दम घुटने लगा है। दीवारों ने उसे जकड़ लिया है और जकड़न इतनी सख्त है कि वे उसके अंदर समा गर्इं हैं। अब सिर्फ वह है, नहीं! वह भी कहां, सिर्फ़ एक पीला वातावरण। 
सड़क पर चलते हुए वह दूर निकल गई। सड़क सूनी थी। दोनों ओर अशोक के एक कतार में खड़े दरख्त थे जो पीले पत्तों से लदे थे। सड़क पर भी पीले पत्तों का गलीचा बिछा था... पीली-पीली धूप थी... सैनिकों के बूटों की आवाज... धांय। धांय गोलियां चल रही थीं... उन्होंने मेरे नोएल को भून दिया था। हवा चलती तो पत्ते टपकते... वह गिरे पत्तों को उठाने लगी... हर पत्ते पर आकर उसके आंसू ठहर जाते... वह इन अटके आंसुओं को अपनी हथेली पर बटोरने लगी, ये आंसू हैं या उसके एकाकी जीवन का खाली एक पन्ना .. वह पीले पत्तों के गलीचे पर बैठ गई। उसने सामने की जगह साफ कर ली और सूखती पीली घास पर एक-एक पत्ता बिछाकर नोएल का नाम लिखा नोएल फ्रेड। उसने देखा कि हर पत्ते पर नोएल का मुस्कुराता चेहरा उभर आया है और हर चेहरा अब खिलखिलाकर हंस रहा है।
सारे वातावरण में रिच के गिटार की झंकार भर गई है और गीत के स्वर लहराने लगे हैं।
आई डोन्ट नो व्हाट लव इज, बट आई थिंक आई एम अरेस्टेड इन इट।
उसी रात जब वह बर्थडे पार्टी से लौटी थी, नोएल उसे पहुंचाने घर आया था।
उसे कैंप कॉफी हाउस की वीरान सड़क पसंद थी। सड़क के दोनों ओर लंबे सफेदा के दरख्त लगे थे जो अपनी सफेद पींड़ और शाखाओं से चिकने और खूबसूरत लग रहे थे।
ऐसे ही दरख्त वहां थे जहां वह और नोएल हाथों में हाथ डाल घूमा करते थे। कितनी ही बार नोएल ने उससे कहा था- इन दरख्तों की पीड़ें तुम्हारी खूबसूरत सफेद टांगों से खूबसूरत नहीं। वह हंस दी थी और आकाश में उड़ते पंछियों की ओर देखते हुए कहा था- "नोएल, मैं उड़ना चाहती हूं। तुम क्या समझते हो कि वे कमजोर और मुलायम पर हैं, जिससे पक्षी उड़ता है? नहीं, वह उसकी उड़ने की इच्छा है, जिससे वह उड़ सकता है, बस इच्छा होनी चाहिए, और देखना नोएल, मैं एक दिन जरूर उड़ूंगी।"
उसकी नीली आंखें डबडबा आर्इं। उसके सामने फैला अछोर अकेलापन था।
नोएल के सभी साथियों ने याद कर रखा था उसका जन्मदिन। वे युद्ध के दिन थे। समुद्र के किनारे, जंगल में किसी घने पेड़ के नीचे हर जगह सैनिक टैन्ट लगाए गए थे। स्कूल और कॉलेज सैनिकों की छावनी बने हुए थे। मृतकों के खाली पड़े घरों में भी वे रह रहे थे। फिर भी जिंदगी थी उनके बीच ।जो बचे थे, या सैनिकों की पहुंच से दूर थे।
नोएल के दोस्तों के समूह में गोरे-काले सभी मित्र थे। उनकी आपस की दोस्ती खतरनाक  मानी जाती थी।  दूसरों की नजरों में। लेकिन वे आपस में दोस्त थे। किसी ने किसी का साथ नहीं छोड़ा था। नोएल उन सभी का बचपन का मित्र था। वह भी नोएल को बचपन से जानती थी।उस दिन जब वह और नोएल अपने घर की छत की बरसाती में छुपे बाहर का जायजा ले रहे थे, तभी सीटी की आवाज से उन्होंने नीचे देखा, जहां रिच खड़ा था।
रिच ने नीचे आने का इशारा किया। वे नीचे उतरे, चलो, सभी जंगल की ओर हैं। दोनों रिच के साथ जंगल की ओर चल पड़े। दूर, बहुत दूर, चलते-चलते वह थक गई थी। गर्भधारण से वह अधिक चल नहीं पाती थी। जगह वही थी, जहां वे अक्सर इकट्ठा होते थे। पास ही नदी बिना शोर के बह रही थी। युद्ध से पहले कितनी ही बार इसी जगह पर उन्होंने पिकनिक मनाई थी और आग जलाकर सींककवाब बनाए थे। कितनी मस्ती भरे दिन थे वे। लेकिन युद्ध ने चारों तरफ मौत का सन्नाटा फैला दिया था। सभी डरे-सहमे रहते थे।
वे दुश्मनों के खिलाफ कुछ करना चाहते थे। लेकिन वे युद्ध लड़ने की सुविधाओं से वंचित थे। क्या था उनके पास सिवा रोष के?
शायद दुश्मनों का छोड़ा हुआ टैन्ट था वह जहां सभी दोस्त इकट्ठे हुए थे। टैन्ट के भीतर मद्धिम रोशनी थी। एक लकड़ी की जर्जर तिपाई पर डेढ़ फुट ऊंचा और उतना ही गोल केक रखा था जिस पर लिखा था- डार्लिंग एग्नेस नोएल फ्रेड के लिए। देखकर न जाने किस संकोच से उसकी आंखें गड़ गर्इं। तब ठंड का मौसम शुरू ही हुआ था। लेकिन जंगल में शरीर को ठिठुराने वाली ठंड थी। सब मित्रों ने मिलकर आग जला ली और वे बर्थडे गीत गाने लगे। आग की सुनहरी रोशनी में उसका चेहरा सुनहरा चमक रहा था। उसने केक काटने की छुरी उठाई तो सभी चिल्ला पड़े-" नहीं! नहीं, पहले एक चुंबन नोएल लेगा एग्नेस का। "वह शरमा गई... नोएल झुका उस पर... एक दीर्घ चुंबन और फिर नोएल के प्रतिचुंबित अधर।
दूर बंदूक से निकली गोलियों की आवाज सुनाई दी। रिच ने अपनी गिटार पर वही चिरपरिचित गीत बजाया- आई डोन्ट नो व्हाट लव इज, बट आई थिंक आई एम अरेस्टेड इन इट। उसने केक काटा और तभी नोएल की गोद में आ गिरी एकदम सरप्राइज की तरह वोदका की पूरी एक बोतल। नोएल अचकचा उठा... अरे कहां से इंतजाम कर लिया तुम लोगों ने!
वह भी आश्चर्य में डूबी थी। वह नहीं जानती थी कि प्यार क्या है, लेकिन वह सचमुच उसकी जबरदस्त गिरफ्त में थी।
सभी पीने लगे थे। केक और स्नैक्स खाते हुए वे पुराने दिनों की मस्ती में आते जा रहे थे।
"युद्ध की समाप्ति के बाद हम दोनों विवाह कर लेंगे।" उसने कहा।
"क्या तुम्हें यह युद्ध इतनी जल्दी समाप्त होता दिखता है?" रिच ने कहा।
नोएल ने लंबी सांस भरी, जिसमें गहरी निराशा थी। बचपन से रंग-भेद का युद्ध तो वे देख ही रहे थे। नोएल ने अपने परिवार को खोया था बरसों पहले युद्ध की विभीषिका में। वह नाना-नानी के पास पला-बढ़ा था।
"चलो आग बुझाएं, वरना वे हम तक पहुंच सकते हैं। रात भी गहरा रही है, हमको चलना चाहिए। नोएल तुम एग्नेस को घर तक पहुंचाओ।" गैरी ने कहा।
"एगी चलो।"  नोएल ने एग्नेस के कंधे पर अपने हाथ रखते हुए कहा। वह एग्नेस को इसी नाम से पुकारता था।
फिर गोलियों की आवाज गूंजी। वह थरथराकर नोएल से लिपट गई। मारिया भी थरथराने लगी। जॉन, मारिया, गैरी, माग्र्रेट, रैचल, टोनी, जिम मार्क, डेनिस सभी समूह में खड़े थे।
"ऐसा क्यों लग रहा है कि यह अंतिम विदाई है? "मारिया ने कहा।
"नहीं, हम फिर मिलेंगे।" जॉन बोला।
"और शायद यह भी हो कि हम कभी न मिलें, जैसा मारिया ने कहा।" मार्क की आवाज भी थरथरा रही थी।
"ऐसा मत कहो।" एग्नेस ने रुआंसी आवाज में कहा।
"हम जरूर मिलेंगे। लगा कि वह रो पड़ेगी।"
"ओके, एग्नेस जाओ, तुम धीमे भी चलती हो।" रिच ने दोनों को विदा किया। पीछे वे भी समूह में चलते रहे, आगे जाकर सभी के रास्ते अलग हो गए।
शहर में मार्शल लॉ लगा है। डैडी ने खबर दी। उन्होंने नोएल को उस रात घर पर ही रुकने की सलाह दी, लेकिन नोएल नहीं माना। उन्हें आश्वस्त करता हुआ वह चला गया।
वही रात अंतिम रात थी, उसके नोएल के लिए... डैड और ममा के लिए।
डिनर के बाद वह अपने बिस्तर पर लेट गई। लेटने के बाद उसे कहीं भी महसूस नहीं हुआ कि यह उसकी जिंदगी की सबसे मनहूस रात साबित होगी। वह तो यादों के खुशगवार झूले में जाने कब तक अकेली झूलती रही थी। अनगिनत गुलाबों की खुशबू समेटे एक चेहरा जो अंधेरे में लगातार रौशन होकर पास आता रहा, वह नोएल ही तो था। वे दोनों हाथ पकड़े चमकदार फूलों से भरी वादियों को लांघते हुए दौड़ते रहे थे।
मैं बेटे का नाम रखूंगी किम। किम नोएल फ्रेड। वह गोरा होगा या अपने पिता जैसा काला? वह सोच रही थी... फिर विचारों को झटका... क्या फर्क पड़ता है... वह पवित्र बच्चा हमारा होगा... सिर्फ हमारा। उसका खून लाल होगा। सोचते-सोचते वह मुस्कुरा पड़ी।
युद्ध में बची थीं उसकी ७२ वर्षीय दादी और वह। उसके प्यारे डैड और ममा को सैनिकों ने अपने बूटों तले रौंद दिया था। रौंदा था ममा की नारी देह को... उसी रात जब वह अपने बिस्तर पर नोएल के ख्यालों में डूब-उतरा रही थी... उसी रात सैनिकों ने उसके घर और आसपास के सभी घरों पर कहर बरपाया था। डैड ने उसे तलघर में छुपा दिया था। छुपाना तो वे ममा को भी चाहते थे, लेकिन वे नहीं मानीं। वे डैड को अकेला नहीं छोड़ रहीं थीं। और घंटों बाद जब वह तलघर से ऊपर आई थी तो उसे मिला था ममा का कटा क्षत-विक्षत नग्न शरीर। 
सत्रह सैनिकों से अकेले जूझते डैडी ममा को नहीं बचा पाए थे। सैनिकों ने ममा की हर चीख पर बंदूक का बैनेट डैडी की देह पर भोंका था और क्रूर विजयी अट्टहास किया था। दादी पहले ही बेहोश हो गई थीं। डैडी उसके सामने तड़प-तड़प कर मर रहे थे। अंत में उन्होंने यही कहा था-  "बेटी, यदि जा सको तो किसी दूसरे देश चली जाओ। यह युद्ध अंतहीन है, तुम अकेली क्या करोगी? "फिर वे बिलखकर रो पड़े थे।
"मैं तुम्हारी ममा को नहीं बचा पाया। "डैड निग्रो जाति के थे और ममा गोरी मेम। दोनों का प्रेम हुआ था, फिर विवाह और दोनों ने पाई यह खूबसूरत गोरी लड़की एग्नेस।
गोरे सैनिकों ने अपनी हवस का शिकार अपनी ही जैसी, अपनी ही नस्ल की गोरी स्त्री को इसलिए बनाया क्योंकि उस स्त्री ने एक काले मर्द से विवाह करने की गलती की थी। वे हर रात ऐसे ही मर्दों को चुनते, या काली औरतों को। डैडी ने मरते समय कहा था- "एग्नेस, वे सत्रह सैनिक थे... सोचो, जरा तुम्हारी ममा के शरीर को नोचते-चीथते सत्रह लोग...।" उसने डैडी के होठों पर उंगली रख दी..." जाओ डैड... ममा तो पहले ही सफर पर जा चुकी थीं..."
दादी को होश आया तो उनसे रोया भी नहीं गया... बस जैसे अवचेतन में बड़बड़ाती रहीं... युद्ध का यही अंत है, यही अंत।
गर्भ का छठा महीना था। वह अकेली थी, नितांत अकेली। अक्सर शाम को वह कैंप कॉफी हाउस चली जाती जहां युवा और अधेड़ वर्ग बहस में मशगूल मिलता। बहसें... बहसें... सिगरेट का धुंआ... कॉफी और पकौड़े तले जाने की गंध पसरी होती। रिकॉर्ड प्लेयर पर बजती कोई धुन...सिक्का डालो और अपना मनपसंद गाना सुनो... वह अफ्रीकी गाना सुनती जो उसके डैड को पसंद था।
"झूठ मत बोलो। "वह चीख पड़ी। सभी मेजों पर सन्नाटा छा गया। वह अकेली बैठी थी और सामने रखा था काली कॉफी का प्याला। सभी उसकी ओर देखने लगे।
"कौन चाहता है युद्ध? बोलो? ये दुनिया के शक्तिशाली देश जो अपनी सत्ता और बढ़ाना चाहते हैं? या हम? या तुम? "वह शून्य में ताक रही थी, "ईरान में क्या हुआ? इराक में क्या हुआ? क्यों नष्ट हुआ हिरोशिमा? क्या वह प्रेम था? तुम कालों से नफरत करो, उन्हें गुलाम बनाओ, जंजीरों से जकड़कर पीटो, काली नस्ल की देह को चीथो, क्या यह प्रेम है?" वह बिलखकर रो पड़ी।" कहां हो नोएल तुम?" उसने मेज पर बांहों के बीच अपना सिर टिका लिया। वह बिलखती रही... कॉफी हाउस फिर बहसों में उलझ गया। उसने सिर उठाया, बुझी सिगरेट ऐशट्रे से निकाली और पुन: जलाई। बाद में सिगरेट के सुलगते सिरे को ऊंगलियों में मसलती रही। अब न हाथ जलते हैं... न ऊंगलियां, वह अंदर से धधकती रहती है। युद्ध ने उसके नोएल को छीना, डैड और ममा को छीना। सारे बचपन के दोस्त जुदा हुए। नोएल के जाने के दूसरे दिन उसने वहीं से वे खून से सने पत्ते बटोरे थे जहां उसके नोएल को सैनिकों ने मारा था। रिच ने बताया था कि "नोएल उसे पहुंचाकर जब लौट रहा था तभी वह घिर गया था। सैनिकों ने उसे सता-सताकर मारा। दौड़ाया, कपड़े उतारकर और हर अंग पर गोलियां बरसार्इं।"
वह उन पत्तों में काला-गोरा खून ढूंढ़ने लगी। पत्ते सहमे थे, कांप रहे थे, मानो भय से वह पीले पड़ गए हों। वह भी कांप रही थी... रिच की टांगें कांप रही थीं। क्रूरता अट्टहास कर रही थी।
रात के हादसे के बाद सुबह लाशें बटोरने गोरे सैनिक आ गए थे। हाथ-गाड़ी में कटी-फटी लाशों को वे इकट्ठा कर रहे थे।
दादी ने उनसे पूछा था- "आखिर कब तक लड़ोगे? कोई अंत है?"
वे चिढ़े हुए थे। "यही रोज का सिलसिला है।" बोले- "हम लड़ रहे हैं या वे?" दूसरे ने उसे चुप कराते हुए कहा- "चुप रहो, बूढ़ी सदमे में है, आंखों के सामने उसके बेटे की लाश है... उसकी पत्नी का बलात्कार हुआ है, यही हर घर की कहानी है।"
फिर उचटती-सी निगाह उस पर डाली... उसके उभरे पेट को देखा और हाथगाड़ी को घसीटते वे चले गए किसी और के घर के सामने।
वह रो रही थी- तो ऐसे गए उसके डैड और ममा... एक हाथगाड़ी में... उस पर चढ़े होंगे किसी और घर के डैड-ममा, शायद जवान बेटे-बेटी भी हों।
अब जीने से फायदा? लेकिन गर्भ में था नन्हा नोएल। सारा जीवन एकदम अंधकारमय उसके सामने मुंह बाएं खड़ा था।
डैड ने कहा था- कहीं चली जाना एग्नेस। लेकिन दादी को छोड़ना नामुमकिन था। और वे कहीं जाना नहीं चाहती थीं। जाती भी कहां? कई भारतीय परिवार देश छोड़ रहे थे। युद्ध का नंगा सच सामने था। अपार संपत्ति और कारोबार छोड़कर वे भाग रहे थे। दादी ने ऐसे ही एक सहृदय भारतीय परिवार के साथ उसे आग्रहपूर्वक यहां से भिजवा दिया। उसके सूटकेस में भर दीं कीमती चीजें, आभूषण और रुपये। दादी ने कहा था-" एग्नेस जाओ, ये लोग मतिभ्रम हो चुके हैं, यहां हर ओर सिर्फ़ अब मौत ही है।"
उसका सूटकेस भी भारतीय परिवार ने संभाला। उसकी जैकेट में थे खून से लिथड़े पीले पत्ते। नोएल के खून से सने। दादी की आंखों में उसने मृत्यु की परछाई देख ली थी। अब सिर्फ नन्हे नोएल को बचाना है। दादी बचा रही थीं उसी की जाति, उसी की नस्ल से उसका बचाव।
आंखें कितनी देर बरसीं, कब सूख गर्इं, पता ही नहीं चला। अभी तो शाम पूरी नहीं घिरी थी और उसके तन-मन में अंधेरा छाया था। भारतीय परिवार ने एक कमरा उसे दे दिया था। अब एग्नेस के पूरे दिन थे। बच्चा कभी भी पैदा हो सकता था। अंधेरे जीवन में उजाले से भरा उसके हाथों में नन्हा नोएल होगा। युद्ध की विभीषिका से दूर, वह एक सुबह आंखें खोलेगा।
झन्न-झन्न रिकॉर्ड प्लेयर पर अफ्रीकी ड्रम बज रहा था। 
वह चौंक पड़ी। मेज पर से सिर उठाया तो सामने रिच खड़ा था। वह गिटार बजा रहा था और नोएल ड्रम बजा रहा था। वह और मारिया थिरक रही थीं।
"नहीं, नोएल रुक जाओ... बाहर मार्शल लॉ लगा है।" वह एकाएक चीख पड़ी।
तभी स्नैक्स सर्व करने वाला लड़का उसके सामने से प्लेट में पकौड़े लेकर गुजरा तो उसने एक पकौड़ा उठा लिया और उसे 'शुक्रिया' कहा। लड़का भौचक उसे देख रहा था। पकौड़ा कुतरते हुए वह चिल्लाई," मैं उड़ना चाहती हूं। यह बहुत थ्रिलिंग होगा। मैं नोएल के पास उड़कर पहुंचना चाहती हूं।" कॉफी हाउस में फिर सन्नाटा छा गया। फिर वह बिलखकर रो पड़ी, "कहां हो तुम नोएल... जानते हो न, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती।"
एक गोरा लड़का, कोई विदेशी, शायद अमेरिकन हो, उसके सामने की मेज पर आकर बैठ गया और उसकी सिकुड़ी बटन टूटी कमीज से उभर आए स्तनों को देखते हुए बोला-डार्लिंग! कुछ कहना चाहती हो, मुझसे कहो। लड़के ने उसका हाथ पकड़ना चाहा।
छि:, वह चीखी यू व्हाइट मैन... तुम सत्रह थे जिन्होंने मेरी मां को, एक स्त्री को मारा... उसका बलात्कार किया। मेरे डैड नीग्रो ६ फुट  का, ८० किलो वजन का था। लेकिन वह कुछ नहीं कर सका, क्योंकि तुम्हारे पास बंदूके थीं... वह निहत्था था लेकिन उसके हृदय में अपार प्रेम था... पूरे विश्व के लिए... वह कुछ नहीं कर सका... कुछ नहीं। एक नेक दिल इंसान..." वह रोने लगी।
"होश में आओ... मैं तो सैनिक नहीं हूं... सैनिक चले गए हैं..." लड़के ने कहा।
"तो क्या हुआ, बन जाओ सैनिक। अबकी बार मेरी दादी को भी मत छोड़ना। "
उसने पॉकिट में हाथ डालकर उस पीले पत्ते को पकड़ लिया, जो कांप रहा था। 

प्रमिला वर्मा

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