रात / निशा
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रात की नीरवता में
झिलमिल तारों की बारात
धीरे धीरे चल रहा है
चंद्रमा उनके साथ ।
चांदनी बिखेर रही
अपने रूप की छटा
जिसे देखकर धरा
हो रही मतवाली ।
सागर की लहरें
मचा रही है शोर
चट्टानों से टकरा कर
कर रही भाव विभोर।
निशा दे रही आमंत्रण
हवा के झोंकों को
निंदिया रानी आ रही
लोरी प्यार की गा रही
मंद-मंद चल हवा ।
*आभा दवे*
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