Monday 25 November 2019

कविता -रात /निशा / आभा दवे

 रात / निशा
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 रात की नीरवता में
 झिलमिल तारों की बारात
 धीरे धीरे चल रहा है 
  चंद्रमा उनके साथ ।
 
  चांदनी बिखेर रही 
  अपने रूप की छटा
   जिसे देखकर धरा 
   हो रही मतवाली ।
  
    सागर की लहरें 
   मचा रही है शोर
   चट्टानों से टकरा कर 
   कर रही भाव विभोर।

    निशा दे रही आमंत्रण 
    हवा के झोंकों को 
    निंदिया रानी आ रही 
    लोरी प्यार की गा रही
    मंद-मंद चल हवा ।

   *आभा दवे*

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