चक्रव्यूह /आभा दवे
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तोड़ना आता नहीं
मन की चिंताओं का चक्रव्यूह
भंवर में फंसे हैं सभी इसके
अपने आप में उलझे हुए
एक के बाद एक चिंताओं के दरवाजे
खुलते जाते हैं और दरवाजों का अंत नजर नहीं आता
उसी में ता उम्र जिंदगी गुजारता है आदमी
और एक दिन दुनिया से दामन छुड़ा कर चला जाता है
जन्म-जन्मातर के चक्रव्यूह में
चिंताओ का यह चक्रव्यूह वंशानुगत है
और यही इस जीवन का सत्य है ।
आभा दवे
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