धनुषाकार वर्ण पिरामिड
धनुषाकार वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य में एक नया छंद विधान है ।
धनुषाकार वर्ण पिरामिड में चौदह चरण है । इसके प्रथम चरण में एक वर्ण ,दूसरे में दो वर्ण ,तीसरे में तीन…….क्रमशः सातवे में सात वर्ण होते है । आठवें चरण में पुनः सात वर्ण , नौ वे चरण में छः दसवें चरण में पाँच , ग्यारहवे चरण में चार वर्ण , बारहवें में तीन , तेरह चरण में दो वर्ण , और चौदह में एक वर्ण होता है । मतलब वर्ण पिरामिड की उल्टी गिनती शुरू हो जाती है और एक वर्ण पर आ कर खत्म हो जाती है । तो धनुषाकार वर्ण पिरामिड बन जाता है ।चूँकि ये देखने में धनुष के आकार के दिखाई देते है इस लिए इसे धनुषाकार वर्ण पिरामिड कहा जाता है । आधे वर्ण नही गिने जाते है । किन्ही दो पदों में तुकांत आने पर रचना सुंदर बन जाती हैं ।
इस विधा में कम शब्दों में ही पूरा भाव समाहित होता है।अर्थात ‘गागर में सागर’
जैसे–
हे -1
माता -2
शारदा -3
ज्ञान- देवी-4
तिमिर मिटा -5
अज्ञानता हटा -6
नवप्रकाश भर-7
हे माँ हँसवाहिनी-7
तू ज्ञानदायिनी-6
मधुर रस-5
जीवन में-4
घोल दे-3
वर -2
दे -1
आभा दवे ©
बहुत ही सुन्दर स्तुति व मार्गदर्शन आदरणीया,समय मिले तो मेरे ब्लाॅग पर भी आएं
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