Friday 5 July 2019

कविता -शून्य

शून्य / आभा दवे 
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   शून्य से खिला हुआ एक
   सुंदर फूल जग ये सारा
   भांति-भांति के उपवनो से
   निखरा हुआ रूप
   उषा की किरण पड़ते ही
   खुल जाते मूंदे नैत्र
   चल पड़ते हैं सभी के कदम
   अपनी -अपनी राहों पर
   मंजिल किसी को पाना है
   तो किसी की करीब है
   शून्य से शिखर तक का
   रास्ता अजीब है
   बिखेर जाते हैं खूशबू
   इस जहाँ में कुछ महान
   व्यक्तित्व के धनी
   और कुछ अंधेरों में हो
   जाते  हैं लुप्त
   शून्य वरण करता सभी का
   अपने में समा  चिरनिंद्रा में
   देता सुला ।

   आभा दवे

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