*उत्सव/ जश्न/आयोजन*
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आभा दवे
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मेरे मन मंदिर में छाई है बहार
जिया मतवाला है और खुशगवार
मन की मुराद पूरी हो गई
लगता है जैसे कोई *उत्सव* हो आज ।
छोटी -छोटी खुशियाँ ही तो चाहते हैं
उन्हें पाकर थोड़ा झूम लेते हैं हम
*जश्न* खुशी का मना लेते हैं जब
अपने आप ही थिरकते हैं पैर तब ।
जीवन की छोटी- छोटी खुशियाँ
जब सब में बाँट लेते हैं
धीरे से मुस्कुरा लेते हैं हम
*आयोजन* तो होता है बहाना एक
सभी के साथ मिलकर जिंदगी गुजार लेते हैं हम।
*आभा दवे*
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