Thursday 4 July 2019

कविता -बुलबुला

बुलबुला / आभा दवे
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मन के  निर्मल आंगन में

उठते हैं नित्य कई रंगीन बुलबुले

जो भर देना चाहते हैं

जीवन में सतरंगी रंग

और देखना चाहते हैं 

उसकी उमंग

चेहरों पर इक उन्मुक्त मुस्कान

निश्छल प्रेम हो उसकी पहचान

सारे जहां में बिखरी  

हो खुशियाँ अपार

बाँट लें सुख-दुख 

मिल सब संग

भरें सब ही ऊँची उड़ान

झूठ का बुलबुला दम तोड़े

सच की हो विजयी मुस्कान

देश बने अपना महान 

करें सभी इसका गुणगान ।

*आभा दवे*

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