Saturday 6 July 2019

मेरे मन पसंद दोहे -रहीम जी के

रहीम के दोहे   - जो मुझे बहुत पसंद है । आज भी उतने ही सार्थक है जितने उस समय थे । रहीम जी की लेखनी को शत् -शत् नमन 

रहीम दास जी के दोहे में शब्दों की मात्रा बहुत ही कम है लेकिन इसका मर्म, महत्व और जीवन का सार अनंत है ।

 
1)दोहा – *रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय | टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय*

2)दोहा – “एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय | रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय |”



 
3). दोहा – “रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय | हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय |”

4)दोहा – “रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत | काटे चाटे स्वान के, दोउ भांति विपरीत |”


 
5) दोहा – “रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि | जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि ।
 
6) दोहा – “रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय | सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय |”

7) दोहा – “रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार | रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार |
 
8)दोहा – “बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय | रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय |”

9). दोहा – “समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात | सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात |

10) दोहा – “रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत | हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत |”
 
11) दोहा – “जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं | गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं |”

12). दोहा – “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग | चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग |
 
13) दोहा – “दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं | जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं |”
 
14)दोहा – “वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग | बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग ।

15). दोहा :- “दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय 
 
16) दोहा – “खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान. रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान
 
17) दोहा – “जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय | प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय ।
 
18). दोहा – “चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह | जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह |”

19). दोहा – “जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड | कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग |”
 
20). दोहा – “रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि | उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि |”
 
21). दोहा – “रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय | हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय |

 22). दोहा – “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर |”

 23). दोहा – “रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर | जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर |”
 
24) दोहा – “बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय | औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय |

25) दोहा – “मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय | फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय |”
 
26). दोहा – “रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन | पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन |
 
27) दोहा – “रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय | हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय ।
 

28). दोहा – “पावस देखि रहीम मन, कोईल साढ़े मौन | अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन |”

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