Saturday 27 July 2019

त्रिवेणी काव्य विधा

त्रिवेणी काव्य विधा
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त्रिवेणी एक तीन पंक्तियों वाली कविता है। ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध गीतकार और कवि गुलज़ार साहब ने इस विधा को विकसित किया था।

  • 'त्रिवेणी' की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापानी काव्य ही कहा जाता है। वैसे गुलज़ार साहब ने इसके संबंध में अपनी त्रिवेणी संग्रह रचना 'त्रिवेणी' के प्रकाशन के अवसर पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी थी-
"शुरू-शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी। 'त्रिवेणी' नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं। लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती, जो गुप्त है नज़र नहीं आती। 'त्रिवेणी' का काम सरस्वती दिखाना है। तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है। 1972-1973 में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे, तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं और अब 'त्रिवेणी' को बालिग़ होते-होते सत्ताईस-अट्ठाईस साल लग गए।
त्रिवेणी काव्य विधा की रचना है तथा यह काव्य हिंदी जगत के विख्यात काव्य रचयिता श्यामदेव पराशर  द्वारा रचित हैं.  इस काव्य  रचना  के लिए श्यामदेव पाराशर  को  १९९७ में  संस्कृत भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित  किया गया था।.  इस विधा  विकसित करने में गुलजार साहब का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा. 
त्रिवेणी का फ़र्क़ इसके मिज़ाज का फर्क है। तीसरा मिसरा पहले दो मिसरों के आशय को कभी निखार देता है, तो कभी उसमें इजा़फा करता है या उन पर ‘कमेंट’ करता है। 

*गुलज़ार जी की त्रिवेणियाँ *
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१)उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलती रही वह शाख़ फ़िज़ा में 

अलविदा कहने को ? या पास बुलाने के लिए ?
२)क्या पता कब कहाँ मारेगी ?
बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी
३)चौदहवें चाँद को फिर आग लगी है देखो 
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा 
राख हो जाएगा जब फिर से अमावस होगी
४)रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था -
चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर 
सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना

५)जुल्फ में यूँ चमक रही है बूँद
जैसे बेरी में तनहा इक जुगनू

क्या बुरा है जो छत टपकती है

६)आओ जुबाने बाँट लें अब अपनी अपनी हम
न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है

दो अनपढ़ों को कितनी मोहब्बत है अदब से

७)ऐसे बिखरे हैं रात दिन, जैसे 
मोतियों वाला हार टूट गया 

तुमने मुझे पिरो के रखा था 


१५) लोग मेलों में भी गुम होकर मिले हैं बारहा
     दास्तानों  के किसी दिलचस्प से एक मोड़ पर
    यूँ  हमेशा के लिए भी क्या बिछड़ता है कोई?
गुलजार
प्रस्तुति - आभा दवे 

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