Thursday 4 July 2019

कविता - छाया



  छाया /आभा दवे 
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जीवन जब से पाया

दुनिया की पड़ी छाया

चारों ओर सब अपने

कोई नहीं यहाँ पराया ।

बाहर -भीतर जग सारा

बहती रही  प्रेम  धारा

लगता सब कुछ अपना

सपनों से  भी  प्यारा ।

सूरज की किरणें जगाती

मधुर निशा हमें सुलाती

गीत खुशी के गाते

जिंदगी हमें बहुत भाती ।

जाना जब सब माया

मिट्टी बन जाएगी काया

मोह  टूटा दुनिया का 

मन में  ईश्वर  छाया  ।

*आभा दवे*





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