छाया /आभा दवे
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जीवन जब से पाया
दुनिया की पड़ी छाया
चारों ओर सब अपने
कोई नहीं यहाँ पराया ।
बाहर -भीतर जग सारा
बहती रही प्रेम धारा
लगता सब कुछ अपना
सपनों से भी प्यारा ।
सूरज की किरणें जगाती
मधुर निशा हमें सुलाती
गीत खुशी के गाते
जिंदगी हमें बहुत भाती ।
जाना जब सब माया
मिट्टी बन जाएगी काया
मोह टूटा दुनिया का
मन में ईश्वर छाया ।
*आभा दवे*
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