Friday 5 July 2019

कविता -कठोर /सख़्त

कठोर /सख्त
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यकीन अब जमाने पर नहीं रहा
बदल रहा हर कोई यहाँ
मुखौटे लगाकर घूम रहे सभी
एक -दूजे को रिझाने के लिए ।

नर्म दिल सभी का हुआ करता था कभी
ना जाने कैसी ये अब आँधी चली
हो रहे सभी कठोर और सख्त दिल                                                                         
इंसान का इंसान से विश्वास खो रहा
अपने भी पराए नजर आने लगे
अपनों से भी धोखा होने लगा ।

ना जाने क्यों?
अपने आप में ही बेचैन
हर कोई रहने लगा
करुणा की पुकार कानों तक 
जाती ही नहीं
छोटी बच्चियों पर भी अन्याय 
होने लगा ।

सख्त दिल पत्थर हो रहे
पत्थर कलियों को कुचलने लगा
कौन किससे शिकायत करे अब
अपना ईमान ही जब छलने लगा ।

आभा दवे
ठाणे पश्चिम, मुंबई

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