Friday 5 July 2019

कविता - प्रेम की आस

प्रेम की आस /आभा दवे 
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जाने सभी *कस्तूरी* बसे मन में 
फिर भी भाग रहे भटकते ही
अपने आप को ही धोखा देते हुए
खुशी की तलाश में हर पल ही ।

न जाने  क्यों और किस की तलाश है
मन में हरदम एक अनबुझी प्यास है
मंजिल पाकर भी दिल क्यों उदास है
शायद हर दिल को प्रेम की ही आस है ।

*आभा दवे*



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